About Rishi Panchami >> ऋषि पंचमी व्रत , व्रत क्यों रखा जाता है

ऋषि पंचमी  इस वर्ष  भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को रहेगा 19 सितम्बर 2023 को  दोपहर 1:43 मिनट पर रहेगा तथा
20 सितम्बर 2023 को  2:16 मिनट पर समाप्त हो जाएगा



ऋषि पंचमी का व्रत खास कर महिलाओं के लिए रखा जाने बाला व्रत हैं 
एक मान्यता यह भी है की मुख्य रुप से  हमारे ऋषियों के योगदान को याद रखना तथा उनका सम्मान करना ऋषि पंचमी के व्रत को करने से महिलाओं की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
 ऋषि पंचमी का व्रत जो भी महिला विधि विधान पूर्वक करती है तो उसको इस रजस्वला समय में हुए सभी पापों से मुक्ति मिलती है यदि किसी स्त्री से जाने अनजाने में भी गलती हुई हो तो वह स्त्री इस ऋषि पंचमी के व्रत को करने से और क्षमा याचना करने से उसकी सारी गलती माफ हो जाती हैं इस व्रत में ऐसा बताया जाता है कि इस व्रत को स्त्री व पुरुष दोनों भी कर सकते हैं ।

                          ।।ऋषि पंचमी व्रत कथा।।
एक समय की बात है एक ब्राह्मण एक गांव में अपनी पत्नी ब्राह्मणी के साथ निवास करता था उन ब्राह्मण पति-पत्नी ने एक दिन ऋषियों को खाने पर आमंत्रण किया तथा उसी दिन ब्राह्मण की पत्नी रजस्वला हो गए अब ब्राह्मणी सोच में पड़ गई कि मैं  ऋषियों को खाने पर कैसे आमंत्रण करूं उनको भोजन कैसे कराओ यह सब कुछ सोचते सोचते वह अपनी पड़ोसन के पास गए तथा उसकी सारी बात बतलाई उसकी ब्रह्माणी की पड़ोसन ने उसको एक सलाह दी पड़ोसन ने बताया कि तुम सात बार नहा लो और सात बार कपड़े बदल लो इसके बाद तुम ब्राह्मण को खाना बना कर खिला दो तथा ऐसा कर ब्राह्मणी ने ऋषियों को खाना बनाकर परोस दिया परंतु ऋषियों ने भोजन करते वक्त अपनी दिव्य दृष्टि से भोजन को देखा तो भोजन में कीड़े चलते हुए दिखाई दिए तथा ऋषि अपनी दिव्य दृष्टि से यह सब कुछ देखकर उसका कारण समझ गए ऑन ऋषियों ने ब्राह्मण तथा ब्राह्मणी को श्राप दिया ब्राह्मणी को अगले जन्म में कुतिया तथा ब्राह्मण को अगले जन्म में बैल बनने का श्राप दिया अगले जन्म में दोनों ब्राह्मण और ब्राह्मण ने अपने कुतिया तथा बेल के रूप में अपने बेटे के यहां रहने लगे ब्राह्मण का बेटा बहुत धार्मिक था उसके पुत्र ने अपने माता-पिता के श्राद्ध पर ब्राह्मणों को भोजन पर आमंत्रण किया यह सारी बात ब्राह्मणी कुत्तिया ने सुनी तथा वह अपने पति बल से यह सारी बात बताने लगी और बोली कि आज हमारा बेटा श्राद्ध कर रहा है आज हम दोनों को खीर पुरी और अच्छे-अच्छे पकवान खाने को मिलेंगे और ब्राह्मण की बेटे की पत्नी ने खीर बनने के लिए चढ़ा दी जब वह बाहर गई तो एक सांप आया और उसनेखीर के बर्तन में विष वमन कर दिया कुतिया के रूप में उसकी सास ने सब कुछ देख लिया तथा और उसने सोचा सभी ब्राह्मण यह खाना खाने पर मर जाएंगे और इन्हें ब्रह्मा पाप लगेगा इसलिए उसने बचाने के लिए उसने बर्तन पर मुंह लगा दिया उसे कुतिया को ऐसा करता देख लिया और उसने चूल्हे से लेकर जलती हुई लकड़ी निकाली और कुतिया को मारी बेचारी कुटिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी चौक में बचा हुआ खाना वह रोज कुत्तिया को डालती थी लेकिन क्रोध के कारण उसने वह सब खाना बाहर फिकवा दिया और उसको दिया और बैल को खाने को कुछ नहीं दिया इसके बाद सारा खाना फेक कर सभी बर्तन साफ करके उसने दोबारा खाना बनाकर ब्राह्मणों को बुलाया और भोजन कराया अब रात हुई और रात के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुत्तिया बेल के रूप में अपनी पूर्व जन्म के पति के पास आकर बोली है स्वामी आज तो मैं भूख से मेरी जान जा रही हूं वैसे तो भेजना कुछ दे देता था लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिल सका मैं तो शाम के विष वाली खीर के बर्तन को इसलिए छुआ कि उनको ब्रह्म हत्या का पाप ना लगे इस कारण से उसकी बहू ने मुझे बहुत मारा और खाने को भी कुछ नहीं दिया तब उसे बेल ने कहा तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनि में पड़ा हूं और आज बोझ ढोते-ढोते मेरी कमर टूट गई आज मैं भी खेत में दिनभर हल जोतता रहा मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे भी मारा मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध  को निष्फल कर दिया अपने माता-पिता की इन बातों को उनके बेटे ने सुन लिया और वह उनके दुख से बहुत दुखी हुआ उसने इस समय उन दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिरदुखी होकर वन में चला गया वन में जाकर उसने ऋषियों से पूछ मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इस नीच योनि को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार उन्हें इस योनि से छुटकारा मिल सकता है तब ऋषि बोले तुम उनकी मुक्ति के लिए अपनी पत्नी के साथ मिलकर ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो और उसका फल अपने माता-पिता को दो ऋषि के कहे अनुसार भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख्य शुद्ध करके उन्होंने पवित्र नदी के जल से स्नान कर और नए रेशमी कपड़े पहनकर सप्त ऋषियों का पूजन किया और सारा पूजन उसने अपनी पत्नी के साथ मिलकर पूरे विधि विधान से किया और उसका पुण्य अपने माता-पिता को दे दिया इसके फल स्वरुप वह दोनों पशु योनि से छूट गए इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है वह समस्त सांसारिक सुखों को भोगकर बैकुंठ को जाती है ऋषि पंचमी के दिन इस कथा को सुनने का बहुत महत्व है।।



No comments:

Hello readers if you have any problem or confussion related to our posts so let me know.

Powered by Blogger.